Tuesday 2 June 2020

दो जून की रोटी

मेहनत की जब फसल उगाई,
दो जून की तब रोटी पाई।

फिरते रहे डगर डगर में,
कोई न काम मिला निज घर में,
शहर तक जब दौड़ लगाई,..
मेहनत की जब फसल उगाई,
दो जून की तब रोटी पाई।

डिग्रियां लिए दर दर भटके,
दिन रात बस यूंही थे कटते,
घर की दशा आंसू ले आई,..
मेहनत की जब फसल उगाई,
दो जून की तब रोटी पाई।

आंसू बहे अपनों की खातिर,
सींचा पसीने से घर मंदिर,
सपने निगले जब मंहगाई,..
मेहनत की जब फसल उगाई,
दो जून की तब रोटी पाई। ,..प्रीति सुराना

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