Sunday 31 May 2020

कोरोना का रोना

कोरोना प्रकृति की चेतावनी

बार-बार उग्रता दर्शाकर प्रकृति ने कभी भूकंप, कभी ज्वालामुखी, कभी सुनामी, कभी तूफानों, सड़क दुर्घटनाओं, रेल दुर्घटनाओं, वायुयानों की दुर्घटनाएं, धर्म के नाम पर दंगे, ओजोन में छेद, प्रदूषण और अनेक असाध्य बीमारियों के माध्यम से समझाने का प्रयास किया। पर न जनसंख्या में नियंत्रण हुआ, न सामाजिक संतुलन स्थापित हुआ, न आर्थिक विषमताओं का खात्मा हुआ। बस बढ़ती गई विषमताएं,व्यभिचार और बुराइयाँ बस प्रकृति का क्रोध बढ़ना ही था सो बढ़ा।
आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं वहाँ नजदीकियाँ दूरियों में बदलती नज़र आ रही है, सुविधाएं कमतर हो रही हैं। जिसके पास धन का अंबार हो वो भी और जो भुखमरी का शिकार हो लेकिन कोरोना के लिए सब बराबर थे। आज कोरोना ने सिखा दिया अधिकतम से न्यूनतम में जीना कैसे संभव है।
बहुतों को समझ आ गया कि सदियों पहले लोग जिन कायदों, साफ सफाई, दूरियाँ और अनेक ऐसे नियम जो आज हम पालन करने को विवश हैं वह वास्तव में हमारी संस्कृति है, जिसका पालन सम्पूर्ण विश्व कर रहा है। 
क्या आपको नहीं लगता कि प्रकृति की इस विनाश सूचक चेतावनी में भारत के लिए एक अवसर ही 'विश्वगुरु बनने का'?
आइये पढ़ते है रचनाकारों के विचार कि क्या वाकई कोरोना:- प्रकृति प्रदत्त चेतावनी है?

सादर आभार
संस्थापक एवं सम्पादक
डॉ प्रीति समकित सुराना
अन्तरा शब्दशक्ति

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