Sunday 24 May 2020

दुआ करो कि

मैं अपनी पीड़ाओं को सजदा करती हूँ
जाने क्यूँ अपनी ही खुशियों से डरती हूँ

आँखों से बरसे ऑंसू सावन के जैसे
मैं भी झरनों सी उन अंसुवन में झरती हूँ

घाव भले मेरे कितने ही गहरे होंगे
प्रेम सिखाकर सबके घावों को भरती हूँ

मौत नहीं आती मुझको कितना भी चाहूँ
दुनिया के ताने सुन-सुन, पल-पल मरती हूँ

सतरंगी सपने है, जान बसी नौ रस में,
मैं खुश रहकर भी कुछ को बहुत अखरती हूँ

सहना सिखलाया मुझको मेरी नियति ने
ये भूल नहीं सकती हूँ मैं तो धरती हूँ

नाम सफल हो आज दुआ दो ये 'ईदी' में
मैं 'प्रीत' हँसी-खुशियों से पीड़ा हरती हूँ।

#डॉप्रीतिसमकितसुराना

1 comment: