Thursday 28 May 2020

कब सोचा था?

कब सोचा था?

विश्व एक ऐसी महामारी से ग्रस्त हो जाएगा कि एक साथ 51 दिन कड़े लॉकडाउन में रहना होगा?
एक ऐसी बीमारी जो सिर्फ छूने से नहीं पास रहने या साथ रहने से भी फैलेगी। एक डर, निराशा और खालीपन का भयावह दृश्य 22 मार्च के जनता कर्फ़्यू में ही दिख गया था।
25 मार्च से जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो लगा मानो कुछ भी करने को नहीं हुआ तो बीमार पड़ जाउंगी।
28 मार्च तक मैंने, समकित और मानु ने मन बनाया कि रचनाएँ आमंत्रित की जाए फिर देखते हैं कि वेबसाइट पर डालकर लिंक देने हैं, साझा संकलन बनाना है या लघुपुस्तिकाएँ। बस 28 को अन्तराशब्दशक्ति में एक सूचना जारी कर दी कि 15 रचनाएँ नाम पता फ़ोटो सहित भेजें। जो पूर्व परिचित या नियमित सदस्य थे उनमें से 13 अप्रेल तक 48 लोगों ने रचनाएँ भेज दी। तब तक तय हो गया कि ईबुक बनाना है, तभी अचानक 14 अप्रेल को पहले से आवेदित कुछ isbn अप्रूव हो गए। तो अचानक विचार किया और isbn आवेदित करना शुरू कर दिए और लॉकडाउन के दूसरे चरण में पुनः सूचना व्यक्तिगत भी प्रचारित कर दी। 
3 मई तक 92 रचनाकारों की रचनाएं आ चुकी थी और लॉकडाउन 17 मई तक बढ़ चुका था।
तब हम तीनों ने लक्ष्य निर्धारित करते हुए 51 दिन के तीन चरणों के लॉकडाउन में 111 पुस्तक और 101 रचनाकारों के वृहद साझा संकलन का मन बनाकर 1900 पेज और शेष isbn 3 मई को आवेदित कर दिए।
14 मई तक 114 पुस्तकें और 1900 पेज का संकलन रेडी किया रात-दिन काम करके। 14 के बाद कुछ मित्रों और नियमित रचनाकारों को लेकर 121 का लक्ष्य आज पूरा किया।
1900 पेज में मेरे अलावा 101 रचनाकार शामिल किए, pdf बड़ा होने से वेबसाइट में अभी अपलोड नहीं किया है और शीघ्र ही 3 प्रातियाँ प्रिंट हो जाएंगी और वेबसाइट पर भी आ जाएगी। सभी 119(मुझे छोड़कर) रचनाकारों के सम्मान पत्र fb पर अपलोड किए गए हैं।
इस दौरान समस्याएं भी बहुत आई-->
1. कोरोना का भय।
2. बिजली की समस्या।
3. नेट और सर्वर का बार-बार बंद होना।
4. मौसम और रातदिन काम से स्वास्थ्यगत समस्याएं।
5. कुछ रचनाकारों की रचनाओं में वर्तनी की बहुत, ज्यादा त्रुटियाँ।
6. काम करने वाले केवल दो लोग थे मैं और मानु भैय्या और काम बहुत था।
7. कुछ रचनाकारों ने बार-बार कहने पर भी रचनाएँ व्यवस्थित टाइप करके नहीं भेजी (दिन भर व्हाट्सप पर सक्रिय होकर भी) जबकि पूरा का पूरा काम व्हाट्सअप पर हुआ।
8. निःशुल्क पूरे 51 दिन के कार्य के बाद बहुत सारे अजीब से सवाल।
9. कुछ रचनाकारों ने केवल सम्मान पत्र की मांग की जो बहुत अजीब लगा।
10. कुछ ने समूह की सूचनाओं को अनदेखा करके अंतिम चरण में शिकायत की कि हमें सूचित नहीं किया :( !
खैर!
लक्ष्य समय पर पूरा हुआ और समय के बाद भी संख्या में वृद्धि हुई जिसके लिए सभी का दिल से आभार।

120 ईबुक्स की लिंक
एक साथ 'आपातकाल में सृजन फुलवारी' की पुस्तकें देखने हेतु लिंक सहित
सभी के सम्मान पत्र fb पर भी पोस्ट किए जा चुके हैं।

प्रिंट में जिन्होंने बुक के लिए आदेशित किया है वो शीघ्र ही तैयार हो जाएगी भेजने पर पहले की तरह ही व्यक्तिगत सूचना और डाक की रसीद भेजी जाएगी।

जिसकी लिंक आदि डिलीट हो जाए वो फेसबुक पेज पर जाकर पुनः कॉपी कर सकते हैं इसके लिए पेज लाइक करके रखें ताकि सूचनाएं मिलती रहे।

वादे के अनुसार सबसे आखरी पुस्तक मेरी होनी थी, जो अंततः आज साझा की है।

कल से विशेष साझा संकलनो का कार्य शुरू होगा।
1. कोरोना प्रकृति की चेतावनी (साझा आलेख संग्रह)
2. मुसीबतें तो आती हैं, मगर डरने का नई!(साझा काव्य संग्रह)
3. माँ (साझा काव्य संग्रह) 
4. मासिक साझा संकलन (जो दैनिक के पेपर से बनाया जाता है, इस माह पूरे अंक एक साथ प्रकाशित होंगे)।

साभार

डॉ प्रीति समकित सुराना
संस्थापक
अन्तराशब्दशक्ति

1 comment:

  1. बहुत बढ़िया. साधुवाद

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