Monday, 20 April 2020

रात के आगोश में



रात के आगोश में पलती हैं
तो पलने दो अनियमित नींदें
मेरी हसरतें मेरे ख्वाब तो सिर्फ 
तुम्हारे आगोश के तलबगार हैं।

तुम्हारे सीने पर रखकर सिर
भूल जाऊँ मैं कष्ट तन-मन के
असहनीय व्याधियों की पीड़ा
ये मेरे समर्पण को अधिकार है।

बहुत उदास है आज मन मेरा
तन की पीड़ा भी कुछ ज्यादा
बालों पर उंगलियों का फिराना
मेरे नैराश्य का अचूक उपचार है।

यूँ ही कभी कुछ नहीं मांग लेती
आज बेचैनियां ज्यादा है मन की
जाने कब मैं खुद को ही हारने लगूँ
कह दूँ तो चैन आए तुमसे प्यार है।

न रहूँ मैं कभी तो उदास मत होना
मुझे याद करके कभी भी मत रोना
अपनी धड़कनों को महसूस करना
नहीं भूलोगे तुम कभी मुझे एतबार है।

हाँ, सिर्फ तुम पर ही मेरा सारा
अधिकार, प्यार और एतबार है
ये मन सिर्फ तुम्हारा तलबगार है
तुम्हारा साथ मेरे नैराश्य का उपचार है।

#डॉप्रीतिसमकितसुराना

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