रात के आगोश में पलती हैं
तो पलने दो अनियमित नींदें
मेरी हसरतें मेरे ख्वाब तो सिर्फ
तुम्हारे आगोश के तलबगार हैं।
तुम्हारे सीने पर रखकर सिर
भूल जाऊँ मैं कष्ट तन-मन के
असहनीय व्याधियों की पीड़ा
ये मेरे समर्पण को अधिकार है।
बहुत उदास है आज मन मेरा
तन की पीड़ा भी कुछ ज्यादा
बालों पर उंगलियों का फिराना
मेरे नैराश्य का अचूक उपचार है।
यूँ ही कभी कुछ नहीं मांग लेती
आज बेचैनियां ज्यादा है मन की
जाने कब मैं खुद को ही हारने लगूँ
कह दूँ तो चैन आए तुमसे प्यार है।
न रहूँ मैं कभी तो उदास मत होना
मुझे याद करके कभी भी मत रोना
अपनी धड़कनों को महसूस करना
नहीं भूलोगे तुम कभी मुझे एतबार है।
हाँ, सिर्फ तुम पर ही मेरा सारा
अधिकार, प्यार और एतबार है
ये मन सिर्फ तुम्हारा तलबगार है
तुम्हारा साथ मेरे नैराश्य का उपचार है।
#डॉप्रीतिसमकितसुराना
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