हौसले ने मेरे कंधे पर हाथ रखा
मैं अचकचाई!
तुम यहाँ कैसे?
तुम तो गुम हो गए थे न
मुझे मुश्किल में अकेला छोड़कर?
हौसला मुस्कुराया!
और बोला,
पागल!
मैं तो तुम्हारे भीतर रहता हूँ
खो तो तुम जाती हो
मुश्किलों से डरकर!
मैं थोड़ी शर्मिंदा हुई
पर हौसला कोई पराया तो नहीं था,
झट से क्षमा मांगकर
साभार गले लगा लिया,..!
दूसरे ही पल लगा
मानो
मैं सशक्त हूँ
और
पल भर में ही
कदमों में आ गई है मंज़िल!
#डॉप्रीतिसमकितसुराना
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