तुम जो गए
तो फिर लौटे ही नहीं
फिर आस किससे
विश्वास किस पर
प्रतीक्षा कितनी
जो प्रेम होता
तो अहं होकर भी
खत्म हो जाता
मैं मुड़ कर खड़ी हूँ
अब तक
ये सोचकर
काश!
तुम पलट कर देख लेते!
हाँ!
तुम्हारी यह धारणा मिथ्या ही थी
कि अहम मुझमें है
और
ये मैंने नहीं
तुमने स्वयं ही सिद्ध कर दिखाया!
#डॉप्रीतिसमकितसुराना
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआह
ReplyDeleteजबरदस्त रचना.
नयी रचना- एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए