Monday, 30 March 2020

आदमी कितना मजबूर है

#सांकलों से बांधता आया है
सदियों से पशुओं को
पिंजरे में पाले हैं कितने ही
आज़ाद पंछियों को
पर सोचो वो तो बेजुबान थे
कह नही सकते थे व्यथा
आज आदमी कितना मजबूर है
जुबान है पर बोल नहीं सकता।

#डॉप्रीति समकित सुराना

1 comment: