#कई रतजगे
काटे थे मैंने
तुम्हारे इंतज़ार में
लिखकर बेनाम चिट्ठियाँ
जिसमें
लिखे थे तमाम सपनें
टूटे भी और
पलकों में बसे भी
सारी शिकायतें
सारी ख्वाहिशें
सारे राज जो तुम जानना चाहते थे
हाँ! सच
उस सवाल का जवाब भी
जो सालों तुम पूछते रहे
कि मैं तुम्हें छूता हूँ तो तुम
घबराती क्यों हो
हम तो कट्टी-बट्टी वाले संगी हैं न!
सुनो!
जिस रोज बाबुल की देहरी छूटी
मेरी पोटली जाने कहाँ छूटी
वो सारी चिट्ठियाँ खो गई
और
जिंदगी के मायने भी!
#डॉप्रीति समकित सुराना
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