हाँ दर्द होता है,
ये दिल भी रोता है
कैसे कहूँ,... किससे कहूँ,..?
जो कहने लगूँ तो
कुछ सपने टूटेंगे
साथी कई फिर
बेबात छूटेंगे
हर बार देखा है
ऐसा ही होता है
कैसे कहूँ,... किससे कहूँ,..?
हाँ दर्द होता है
ये दिल भी रोता है
देखे है जीवन में
मंजर बुरे भी तो
किया था एतबार
आखिर टूटे भी तो
कुछ पाने की खातिर
कुछ हर कोई खोता है
कैसे कहूँ,... किससे कहूँ,..?
हाँ दर्द होता है
ये दिल भी रोता है
रही भीड़ में भी
तन्हा हमेशा ही
जो चाहा वो पाकर भी
खुद को तो कोसा ही
खुशी में किसी की
न खुश कोई होता है
कैसे कहूँ,... किससे कहूँ,..?
हाँ दर्द होता है
ये दिल भी रोता है!
जीती जिद से हर जंग
मन हुआ अब मलंग
बाकी न कोई ख्वाहिश
न जीने की उमंग
जिम्मेदारियाँ की खातिर
जीना ही होता है
कैसे कहूँ,... किससे कहूँ,..?
हाँ दर्द होता है
ये दिल भी रोता है।
डॉ प्रीति समकित सुराना
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