खुद से दूर जाते हुए
मैंने महसूस किया
बहुत आसान है
दूर जाना
एक तरह से
हर वादे, इरादे
जिम्मेदारियों से मुक्ति
कितना कठिन है
पास रहना
साथ रहना
वो भी खुद के
मैं भगौड़ी तो नहीं
मेरी जिम्मेदारियाँ
सपने, वादे, इरादे
सब कुछ मेरे थे
जो किसी ने नहीं
मैंने खुद से खुद जोड़े थे
फिर पलायन क्यों?
बस
ये समझते ही
मैं लौट आई
अपने पास
दूर जाते हुए,..!
सुनो!
मैंने ठीक किया न?
प्रीति सुराना
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