सुनो!
मैं आँखों ही आँखों में गुजार दूंगी ज़िंदगी
बशर्ते
मेरी खुली आँखों में
मेरी बंद पलकों में तुम हो,
तुम्ही बैठों पलकों पर
तुम्ही झलको अश्कों में
तुम नींदों में
तुम्हीं सपनों में
तुम दूर की नज़र में
तुम पास की बारीकियों में
तुम जो न हुए पल भर को ओझल
गुजार दूंगी ज़िंदगी
मैं आँखों ही आँखों में
प्रीति सुराना
बहुत सुन्दर
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