Friday, 14 February 2020

आँखे पथरा गई

#ख्वाब में  हम सुनहरे  मंज़र  देखते  रहे,
जो  हर रोज़  नींद के साथ  ही टूटते रहे,
टूटकर बिखरे फिर बिखरकर इतना रोये, 
कि  रो-रोकर ये  आँखें भी  पथरा गई हैं,
उम्मीदें  हैं कि  फिर-फिर  जाग जाती हैं,
फिर नींद  आकर  नए ख्वाब दिखाती है,
ख्वाब फिर टूटते हैं, हम फिर बिखरते हैं,
जाने क्यों जिंदगी ये बार-बार दोहरा रही है।

#प्रीति सुराना

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