#ख्वाब में हम सुनहरे मंज़र देखते रहे,
जो हर रोज़ नींद के साथ ही टूटते रहे,
टूटकर बिखरे फिर बिखरकर इतना रोये,
कि रो-रोकर ये आँखें भी पथरा गई हैं,
उम्मीदें हैं कि फिर-फिर जाग जाती हैं,
फिर नींद आकर नए ख्वाब दिखाती है,
ख्वाब फिर टूटते हैं, हम फिर बिखरते हैं,
जाने क्यों जिंदगी ये बार-बार दोहरा रही है।
#प्रीति सुराना
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