Wednesday, 23 October 2019

गम के हाले

गम के हाले

बदरा फिर घिर आए काले
मन पर लगने लगे फिर जाले

मौसम ने बदला फिर तेवर
धरती पर भी गड़बड़ झाले

सूरज छुपकर जा बैठा है
समय न कटता बैठे ठाले

मन की पीड़ा तन से ज़्यादा
बिना चले पैरों पर छाले

आंखें भीगी भीगी रहती
पर होठों पर लगे हैं ताले

किस ईश्वर को कैसे पुकारूँ?
कौन सुनेगा दर्द के नाले?

रीति-नीति या राजनीति से
कभी भी मेरे पड़े न पाले

दुनिया बैरी यूँही बन बैठी
हर दिल में दिखते है फाले

भाव नया कोई न दिखता
ईर्ष्या-द्वेष सब देखेभाले

पीड़ा अक्सर ही देते हैं
अपने बनकर रहने वाले

फिर भी जीना हो तो 'प्रीति'
पीने ही होंगे गम के हाले

प्रीति सुराना

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