Saturday, 19 October 2019

सीढियाँ

सीढियाँ

एक मजदूर जब सीढियाँ बनाता है
तो सबसे पहले करता है ढलाई उस मचान की
जिससे सीढियाँ जमीन पर उतरेंगी,..!
वो ये गलती नहीं करता
कि सीढ़ी का पहला पायदान बनाकर
दूसरा, फिर तीसरा, फिर चौथा बनाते हुए
सीढ़ी के अंतिम पड़ाव यानि छत पर पहुँचे,..!
क्योंकि अगर वो ऐसा करेगा
तो उसे हर पायदान के सूखने तक
प्रतीक्षा करनी होगी,...!
एक मजदूर रोजी-रोटी की जुगाड़ में रहता है
नहीं करता ऐसी गलती क्योंकि उसे पता होता है
रहना पराई छत पर नहीं अपनी जमीन पर ही है!

और दूसरी तरफ
एक सफल व्यक्ति कभी नहीं करता ये गलती
कि छत पर पहुँच कर काट दे अपनी सीढियाँ,..!
क्योंकि छत पर जीवन नहीं है
और जीवन के लिए 
जमीनी जुड़ाव, अपनों का साथ,
परिवार, समाज और देश सबकी जरूरत होगी,
बिना सीढ़ियों के उतरना नहीं बल्कि गिरना होगा
ये वो बखूबी जनता है,..!

एक और जरूरी बात
सीढ़ी चढ़कर ऊपर पहुंचने वाला
तन, मन, धन का समर्पण और उपयोग
अपने विवेक से करता है
तभी सफल है
वो जानता है कि झुककर निचले पायदान को काटते ही गिरना तय है
और इस असफलता की चोट
जानलेवा भी हो सकती है,..!

चिंतन जरूर करना चाहिए
कि कुंठित होकर
किसी भी सफल व्यक्ति पर
उंगलियाँ उठाना
समय की बरबादी ही नहीं
खुद के व्यक्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाना है,..!

सफलता हमारे कदम जरूर चूमेगी
मिटाने की नहीं बनाने की सोच को पोषित करें,
सारा खेल सोच का है
सोच की दिशा ही भविष्य की सीढ़ी है
जो हमे खुद के लिए खुद बनानी है,..
किसी ने बनाकर परमार्थ कर भी दिया
तो चढ़ना और संतुलन बनाए रखना
ये हमारा ही दायित्व होगा किसी और का नहीं,.!

इसलिए मजदूर हों या सफल व्यक्ति
शुरुआत ये करें कि हम अपनी सोच बदलें
दुनिया तो हमारी सोच से
प्रभावित होकर भी बदल सकती है।

प्रीति सुराना

2 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२० -१०-२०१९ ) को " बस करो..!! "(चर्चा अंक- ३४९४) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. वाह बेहतरीन रचना।

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