Friday, 2 August 2019

कविता फूट-फूट कर रोई!

कविता फूट-फूट कर रोई!

कविता फूट-फूट कर रोई!
मेरा दोष बता दे कोई !!

तुकांत-अतुकांत, गीत, छंद,
मुखड़ा, अन्तरा या कोई बंद
प्रेम विरह या क्रान्ति गीत बन
हर रुप में ही मैं सजती थी
फिर वो सम्मान मैं क्यों खोई,
कविता फूट-फूट कर रोई!
मेरा दोष बता दे कोई!

महाराजाओं की बैठक में
प्रेमी की अटारी या छत में
फिल्मों के गीतों की धुन में
मंचों पर सावन-फागुन में
भावों की ही फसलें बोई,
कविता फूट-फूट कर रोई!
मेरा दोष बता दे कोई!

आवाज़ सभी की सदा बनी
मैं भाषा का अभिमान बनी
जिसने जब जैसे भी चाहा
संग उसके मैं वैसे ही ढली
उपहास बनी किस्मत सोई,
कविता फूट-फूट कर रोई!
मेरा दोष बता दे कोई!

हर युग में साहित्य की शान बनी,
और संस्कृति की पहचान बनी,
आज कवि बन गए विदूषक,
अश्लील शब्दावली, भद्दे रूपक,
या वासना का पर्याय है कोई,
कविता फूट-फूट कर रोई!
मेरा दोष बता दे कोई!

चिंतन कर लें चिंतक सारे
आज विचारक बैठ विचारें
उत्तरदायित्व लेखक कवियों का
और सच्चे साहित्य प्रेमियों का
इसकी लाज बचा ले कोई,
कविता फूट-फूट कर रोई!
मेरा दोष बता दे कोई!

प्रीति सुराना

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