Thursday, 1 August 2019

रोना क्यों??

रोना क्यों??

पल पल में पलकें भिगोना क्यों
हर इक पीर में रोना क्यों

कुछ तो कर्मों की गलती है
और कुछ भाग्य भी रूठा है
समय समय की बात है
ये कालचक्र ही अनूठा है
जो मिला है उसे संभालो
व्यर्थ में सबकुछ खोना क्यों?
पल पल में पलकें भिगोना क्यों,
हर इक पीर में रोना क्यों???

स्वार्थ की दुनिया है ये तो
सब जन निज हित ही चाहें
खुद को बदल सको तो बदलो
लोग नहीं बदलेंगे राहें
बीच सफर में ऐसे रुककर
रोने को ढूंढें कोना क्यों?
पल पल में पलकें भिगोना क्यों
हर इक पीर में रोना क्यों???

अपना मन अपना आंगन है
उसमें जो भी चाहे रख लो
मीठी अमिया खट्टी निम्बोरी
जो चखना हो वो चख लो
देहरी पर गुलमोहर लगाओ
कांटों की बेलें बोना क्यों?
पल पल में पलकें भिगोना क्यों
हर इक पीर में रोना क्यों???

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