Monday, 24 June 2019

'आश्वासन' (एक व्यंग्य रचना)

नई नई खुली थी
योग की एक दुकान
लोग थे पहने हुए
तरह तरह के परिधान
भिन्न भिन्न आसनों में
मिले वहां कई लोग
हर कोई था दिखा
तलाशता कोई निदान

नज़र पड़ी वहां एक
योगगुरु थे विराजमान
वो थे बड़े ही परेशान
कैसे करें शुरू निदान
बड़ी संख्या में नेताओं का
वहां था एक ही सवाल
तनाव के लिए कोई
आसन बताए आसान

करवा चुके थे योगगुरु
कठिन सरल कई आसन
पर न मिल सका कोई
विकल मन पर अनुशासन
बाबा जी से योगगुरु ने
पूछा इसका नया उपाय
बाबा जी बोले,....
नेताओं को आसन नहीं
सिखाओ कुछ नए 'आश्वासन' । ,...प्रीति सुराना

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