'संतुलित उड़ान, सफलता की पहचान'
चिरैय्या के नन्हे से बच्चे ने पंख फड़फड़ाने शुरू ही किये थे कि खाने की व्यवस्था में गए माँ बाप की अनुपस्थिति का फायदा उठाते हुए आलसी कबूतर ने बच्चे को पुकारा।
सुन छुटके! ज्यादा पंख मत फड़फड़ा, मेरे पैर के पंजों जितना तो है खाक उड़ पाएगा। तेरे माँ-बाप तुझे दाना डालते रहेंगे और तू मस्त पड़ा रहना अपने डैने में, काहे दिमाग लगाता है, क्या करेगा उड़ना सीखकर?
भारी-भरकम रौबदार आवाज़ और खुद से विशाल आकार देखकर बच्चा घबरा गया। और चुपचाप कोने में दुबक गया।
माँ-पापा के लौटने पर डरते-डरते सब बताया। दोनों ने मिलकर उसे समझाया और उसके मन से आलसी कबूतर का डर भी निकाला और उड़ना भी सिखाया।
एक दिन सुबह सुबह कबूतरी के जाते ही कबूतर घोसले में ही भूख मिटाने के लिए कुछ ढूंढने लगा। तभी फुर्र से चिड़िया का बच्चा पास से उड़ा।
उसकी उड़ान में स्वावलम्बन का विश्वास और स्वाधीनता की खुशी थी।
उड़ान भरता हुआ वो आलसी कबूतर को मीठी सी मगर आत्मविश्वास से परिपूर्ण आवाज़ में बोलकर गया।
कबूतर काका आसमान बहुत बड़ा है। बहुत ज्यादा बड़ा तुमसे भी बड़ा, इस पेड़ से भी बड़ा और सुंदर। माँ ने कहा है ज्यादा ऊँचा नहीं उड़ना और पेट भर दाना चुगगर कुछ दाने घर ले आना।
तुम डालपर बैठे देखते रहो, मुझे बड़ा होना है, जल्दी लौटकर कुछ तिनके भी जोड़ूंगा। माँ मुझे घोसला बनाना भी सिखाएगी मैं भी बड़ा होने वाला हूँ।
और उसी आत्मविश्वास के साथ वो उड़ गया उदरपूर्ति के लिए संतुलित उड़ान। पर उसे पता था कि लौटना घर ही है और बनाना है खयड का आशियाना। जीवन की हर रीत निभानी है चाहे उड़ना कितना भी सीख ले।
प्रीति सुराना
बढ़िया
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