पर्यावरण दिवस था, वृक्षारोपण का कार्यक्रम जगह-जगह चल रहा था।
एक जगह 10-20 लोगों का समूह 10-20 गड्ढे खोदकर हर गड्ढे में मुट्ठी भर-भर कर अलग-अलग गड्ढों में अलग-अलग प्रकार के बीज डाल रहे थे, कुछ लोग उन बीजों पर मिट्टी डाल रहे थे और कुछ लोग झारी में पानी भरकर उन गढ्ढों के ऊपर पानी डाल रहे थे। एक बड़े ही सयाने व्यक्ति ने जिन्हें इस अवसर पर अतिथि के रूप में बुलाया गया था, पूछा कि इस पूरी प्रक्रिया से लाभ क्या होगा।
संस्था के पदाधिकारियों ने कहा- महोदय ये जगह घरों के जल निकासी मार्ग के बिल्कुल पास है जो नहर मार्ग तक हमेशा नमीयुक्त होती है। जिससे इन बीजों में कोई न कोई बीज हर गड्ढे में अंकुरित होकर बढ़ ही जाएगा। और हर गड्ढे में अलग प्रजाति का बीज है तो विविध प्रकार के वृक्ष पल्लवित होंगे जिन्हें विशेष देखभाल की जरूरत भी नहीं होगी। महोदय चुपचाप सुनते रहे। सभी साथियों को योगदान के लिए सम्मानित किया। महोदय का विशेष सम्मान हुआ।
अगले एक अन्य आयोजन में भी वे अतिथि थे। वहाँ पहुँचे तो देखा। 70 लोग अपने-अपने हाथ में गोबर और मिट्टी की गेंद सरीखी कोई वस्तु पकड़े खड़े थे। सबने अपने-अपने गड्ढे खोदे। गेंदनुमा मिट्टी और खाद में एक-एक मनपसंद बीज डाला। और मिट्टी से ढककर छोड़ दिया। संस्था के संस्थापक ने गोलाई में लगाए इन बीजों के करीब एक पाइपलाइन बिछा दी जिसमे बहुत ही महीन छिद्र थे। और वह पाइप एक बहुत बड़े सहित्यभवन के मूल जल निकास से जोड़ दिया जिसे भवन के व्यवस्थापकों ने जल संरक्षण के उद्देश्य से पास के ही तालाब तक लाकर छोड़ दिया।
अतिथि महोदय फिर अचंभित। उनका सम्मान, फिर वृक्ष और वृक्षारोपण पर व्याख्यान, सभी सदस्यों का सम्मान पर्यावरण प्रेमी के रूप में हुआ। महोदय ने संस्थापक से पूछा इन सब का उद्देश्य। संस्थापक ने बताया 70 लोगों को हमनें प्रेरणा दी, वृक्ष लगाने की, एक भवन के पीछे खाली पड़े मैदान को 70 बीजों से घेरा गया, ताकि वृक्ष पनपे तो उद्यान का रूप ले ले। खुली जगह में जल निकास का उपयोग पौधों की सिंचाई के काम आएगा। हर व्यक्ति ने अपने लगाए पेड़ की जिम्मेदारी खुद लेते हुए उसके पास ही अपने नाम की तख्ती गड़ा ढ़ी है जिसमे वृक्ष की प्रजाति और लगाने की तिथि भी लिखी है।
अब महोदय से रहा नहीं गया। क्योंकि कभी न देखा, न सुना, न समझा केवल सरकारी खर्चों पर होने वाले अभियानों के हिस्सा रहे जिसका बाद में क्या हुआ किसी को कोई मतलब नहीं। ऐसे में ये सारी गतिविधि भी व्यर्थ लगी।
महोदय इसकी उसकी करने में भी माहिर थे। बोलना शुरू किया, अभी एक जगह और गया था। मुठ्ठी भर बीज लगाए, कौन सा पनपेगा कौन सा मरेगा पता नहीं लेकिन प्रमाणपत्र सबको पकड़ा दिया। अभी यहां एक नया खेल 70 बीज अभी बोये ही हैं। लगेगा नहीं लगेगा कोई ठिकाना नहीं। जल संरक्षण का बहाना करके सिंचाई के काम से भी बच गए और अपने नाम का झंडा अलग गाड़ दिया। और उद्यान बने या न बने, अपना अपना फ़ोटो चिपका हुआ सम्मान प्रतीक चिन्ह अलग ले गए, अजीब चोचले हैं? बीज फूटा नहीं और पेड़ उगाने का तमगा? ऐसे चोचले समाज में करके ऐसे आयोजनों से वृक्षारोपण की महत्ता का निरादर करके धूम-धड़क्का करके, मीडिया में प्रचार प्रसार करेंगे, खूब फ़ोटोसेशन होंगे और बन गए बड़े-बड़े सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरण प्रेमी। ये है आजकल की कहानी।
एक नवयुवक पास ही खड़ा सब देखसुन रहा था। वो पास आया और बोला, आदरणीय इस अवसर पर आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ क्योंकि आपकी बातों ने प्रभावित किया।
महोदय खुश हुए- नवयुवक ने पूछा आप समाजसेवा के अग्रणी है, आपका बहुत नाम है और आपको सरकार से 200000 रु का पुरुस्कार भी मिला था। क्या आप बताएंगे जो पेड़ आपने लगाया था वो किस प्रजाति का, कहाँ और कितना बड़ा है और पिछली बार आप वहाँ कब गए थे, गए थे तो क्या आपने वृक्ष को देखा या सींचा?
अब अवसर था सभी सम्मानित सदस्यों के चेहरे पर मुस्कान का और महोदय के बगले झाँकने का।
और लोग सोच रहे थे:-
अभी तो
पुस्तक की ज़िल्द सूखी ही नहीं
और पहुँचने गए लोग पन्ने फाड़ने
काश!
दूसरों के सम्मान से कुढ़ने की बजाय
कोई बेहतर पैगाम दुनिया के नाम लिख दिया होता।
प्रीति सुराना
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सुंदर।
ReplyDeleteबहुत सार्थक लेख स्वयं वादी लोगों को आइना दिखाता।
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