Tuesday, 11 June 2019

थोड़ा सा आराम

थोड़ा सा आराम

थक गई हूँ
अब चाहिए थोड़ा सा आराम
बहुत रह ली
ऐसे लोगों के बीच
जो साथ रहकर भी
इतनी फुरसत में होते हैं
कि
इसकी उससे
उसकी उससे
और
उसकी इससे करते करते थके नहीं,..!
पर सच मैं थक गई
साहित्य, समर्पण, साथ, समन्वय, सहृदयता
मेरा जुनून है,
जीने की वजह है,
करती रहती हूँ कुछ न कुछ अलग सा,
और सौभाग्य है
रहते है साथ
सुरक्षा कवच की तरह
मेरा परिवार, मेरे दोस्त, मेरे साथी,..!
और हर सफलता के बाद सारा श्रेय जाता है
मेरे अपनों को,..!
लेकिन सच कहूँ
कुछ करने की जिद और जुनून
उन लोगों से मिलता है
जिन्हें तकलीफ है मेरे कुछ भी करने से
साम, दाम, दंड, भेद, भी जब काम नहीं आते
तो फिर शुरू करते हैं कांटे बोना,
और मैं फिर जुट जाती हूँ इस तैयारी में
मुझे अगले मौसम
फिर चुनना है इन्हीं कांटों से फूल,...!
पर फिलहाल
मन चाहता हैं थोड़ा सा आराम,
खुद से थोड़े सवालों के जवाब,
क्योंकि
थकान ने छीन ली है सुकून भरी नींद
और नींद की गोलियों ने छीन लिए हैं ख्वाब,...!

प्रीति सुराना

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