बूंद-बूंद सहेज कर
आँसुओं के कई दरिया
बना रही हूँ
आँखों में समंदर खारा
सुना है
धरा को संभालते हैं
मिलकर समंदर सारे,...!
प्रीति सुराना
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बूंद-बूंद सहेज कर
आँसुओं के कई दरिया
बना रही हूँ
आँखों में समंदर खारा
सुना है
धरा को संभालते हैं
मिलकर समंदर सारे,...!
प्रीति सुराना
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