मेले में,..
मैं रोई बहुत अकेले में।
हँसना ही था जो मेले में।।
अपनी खुशियाँ ही भूल गई।
बीते दिन रात झमेले में।।
इस मन से मन ही जो न मिला।
अनमोल बिका मन ढेले में।।
कोशिश चाहे जितनी कर ली।
हारे किसमत के खेले में।।
'प्रीत' जरा समझा अब मन को।
घुट-घुट जीना न अकेले में,...।।
प्रीति सुराना
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