Monday 31 December 2018

मैं कह रही हूँ

अनवरत मैं कह रही हूँ
मैं सतत ही ढह रही हूँ

ज्वार या भाटे बनी मैं
उठ रही या बह रही हूँ

बिखरते अरमान मन के
ऊपर से तह रही हूँ

वाकिफ हूँ हर सितम से
रोज़ पीड़ा सह रही हूँ

'प्रीत' जीवन कठिन है पर
मैं जिंदा तो रह रही हूँ!!

प्रीति सुराना

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