Monday 31 December 2018

गलबहियाँ

किलकारियों से खिलखिलाहट तक,
खिलखिलाहट से मुस्कुराहट तक,
और अब मुस्कुराहटों के मायने समझाने
और
मुस्कुराकर बार-बार आंखों की नमी
चुपके से छुपा लेने तक की उम्र में,
आज यूँ
बिंदास होकर मिलना,
और किलकारियों और खिलखिलाहटों वाला बचपन न सही,
बचपन वाली यादों की गलियों से गलबहियाँ,
शब्दों में न बंधी जा सकने वाली खुशी और संतुष्टि,...
हाँ!
वादा रहा दोस्तों
मिले
फिर मिलेंगे
मिलते रहेंगे,..
जीवन में बचपन के इस अंश से
जिंदगी जीने का हौसला मिलता है,... है न!!!

प्रीति सुराना

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