Tuesday, 13 November 2018

खैर,..!

खैर,...!

हाँ!
रोक लिया खुद को
अब आगे किसी सफर का कोई इरादा नहीं,
अपने से या अपनों से कोई वादा नहीं,
चली थी मजबूत इरादे से
सोचा था समय बहुत बलवान है
परिस्थितियाँ बदलने का हुनर रखता है,
और सचमुच
मैंने देखा समय के बदलाव को,
"घूरे के दिन भी फिरते हैं"
ये कहावत याद रही हमेशा
पर अब
ये हमेशा याद रहेगा
कि
"ये समय भी चला जाएगा"
दुख हो या सुख
सावधान अगला पड़ाव इंतज़ार कर रहा है,
और
अकेलापन मुझपर हावी हो जाए
उससे पहले ढूंढना चाहती हूँ
अपने ही भीतर एक गहन एकांत
क्योंकि करना होगा मुझे
विश्लेषण, चिंतन, आत्ममंथन
क्योंकि ये कभी स्वीकार नहीं
कोई लगाए मिथ्या आरोप,
जबकि
जानते हुए किसी को कष्ट देना स्वभाव नहीं,
पर
बिना गलती कटघरे में रहना स्वीकार नहीं,
इसलिए
जीवन की सार्थकता इसी में है
सोचूं, समझूँ और सुधार लूँ
वो सब कुछ जो
जाने-अनजाने, अच्छा बुरा,
किया हो, करवाया हो,
या करते हुए का अनुमोदन किया हो।
जानती हूँ कोई नहीं समझेगा मुझे
अब की बार भी रहेगा
सब गलत, सब अधूरा,
अंततः
न किसी से दोस्ती, न किसी से बैर,...
खैर,...!

प्रीति सुराना

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