हाँ!
सच के कई रंग होते हैं,
पर अंतिम सच यही है
जहां रिश्ता दिल से होता है
समय के फेरे कितने भी चाल चले,
रिश्ता कितना ही बदले
डोर टूटती नहीं
बल्कि मजबूत होती है।
जीवन के कालचक्र
और
जिम्मेदारियों के निर्वाह के दौरान
रिश्तों में ठहराव भी आता है
पर पुराने होने से,
बातचीत कम होने
या विषयों के बदल जाने से
रिश्ता टूटता या बिखरता नहीं
बल्कि
संतुलन बनाता है।
याद रहे
शादी के लड्डू रोज नहीं खाये जाते,
क्योंकि सिर्फ मीठा
हमेशा नहीं खाया जा सकता।
पौष्टिकता और स्वाद के लिए
हर मसाला महत्वपूर्ण होता है
चाहे नमक हो
शक्कर हो
या मिर्च।
हर रिश्ता
मजबूती और ठहराव पाने के बाद
रिश्ते की तरफ से निश्चिंत होकर
खुद को और मजबूती से
आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है
न कि रिश्ते को भुलाकर
दूर होने का बहाना ढूंढता।
कभी
किसी मोड़ पर
किसी रिश्ते के साथ
ऐसा महसूस हो
तो अपेक्षाओं, शिकायतों
और आरोपों के तमगे नहीं देना
थोड़ा रुकना
थोड़ा संभालना
और समय देना
और विस्थापन की क्रिया अपनाना।
उसकी जगह खुद
और
खुद की जगह उसे रखना,
पूरी ईमानदारी से
पूर्वाग्रहों को त्यागकर
दिमाग से नहीं दिल से
सोचना, समझना और फिर से जीना
वही रिश्ता
तारो ताज़गी के साथ खिल उठेगा।
सनद रहे
इस पूरी प्रक्रिया के साथ
वही रिश्ता जुड़ा रहता है
जो वाकई निः स्वार्थ प्रेम में पगा हुआ हो
अन्यथा
आजकल सात फेरे भी सात जन्म के नहीं होते
और टूट जाते हैं गुड्डे-गुड़ियों और खिलौनों की तरह।
सुनो!
अहम व्यक्तित्व का अटूट हिस्सा है
टकराता ही है अकसर
अपनों में भी,
पर वहम
व्यक्ति के लिये जहरीला है
रिश्तों को
कसौटियों की नहीं
विश्वास और धैर्य की जरूरत होती है।
हाँ!
कह रही हूँ
ये सब कुछ तुम्हें
हक से
क्योंकि
एक अटूट रिश्ता
हमारे दरमियान भी तो है
जो अब पुराना होने लगा है।
सावधान!!!
हमें नहीं बदलना है
बल्कि
नज़रिया बदलना है
रिश्ते की मजबूती के लिए।
है न?
प्रीति सुराना
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन डॉ. सालिम अली - राष्ट्रीय पक्षी दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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