हाँ!
मैंने दर्द को जीया है
अपने जख्मों को सीया है
तुम्हारी मुस्कान की खातिर
आँसुओं को पीया है
कभी छुपा लिये तनाव सारे
कभी सबकुछ तुम्हारे लिए हारे
कभी लड़े हालातों से
कभी लिये उम्मीदों के सहारे
बस सदा यही किये जतन
न हो संस्कारों का पतन
अब तुम्हीं बताओ मुझे
ये भी है न अनमोल रतन,...
बोलो न
ये अनमोल रतन भी
प्रेम ही है न??
प्रीति सुराना
૦૧-૧૧-૨૦૧૮
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