'जीवन की लहरों पर'
मुझे नहीं पता
क्या है
जो चुभता है आजकल
रह-रह कर अचानक
सीने में,..
वो सलाइयाँ तो रख दी सालों पहले
अटालों में पड़े अतीत के संदूक में,
जिन पर डाला करती थी
ख्वाहिशों के नित नए फंदे
और बुनती थी कई नए ख्वाब,..
चाहतों के
कामयाबी के
शोहरत के
मोहब्बत के
उम्मीदों के,...
हाँ!
कुछ ख्वाबों के टुकड़े
जरूर रह गए
जेहन और दिल के कोनों के
खुरदुरे हिस्सों में अटके हुए,..
लगता है चुभते हैं वही
और होती है टीस
जबकि उम्मीदों का
कोई और सिरा दिखता नहीं
सिवा तुम पर यकीन के,...
तुम्हारा साथ डूबते को तिनके के सहारा सा,
यूँ खुद को छोड़ देना
जीवन की लहरों पर किसी के भरोसे
जिसे कुछ लोग अंधविश्वास
और कुछ नसीब का खेल कहते है,...
बताओ न,... क्या ये भी प्यार है??
प्रीति सुराना
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