Thursday, 18 October 2018

समाधान

समाधान

हर बार सोचती हूँ
कि न सोचूँ
जो हो रहा है होने दूँ
जो चल रहा है चलने दूँ
जो बीत रहा है बीतने दूँ

खीझती हूँ
जो हो रहा है वो क्यों हो रहा है
जो चल रहा है वो क्यों चल रहा है
जो बीत रहा है वो क्यों बीत रहा है

तड़प कर पूछना चाहती हूँ
अधिकार बराबरी के
वादे समकक्ष खड़े होने के
वचन जीवन भर साथ के
स्वप्न सारे सांझे
मेहनत हमकदम बनकर
कर्मों में साथी

पर
हो रहे है आरोप प्रत्यारोप से
रिश्ते अभिशापित
चल रहा है केवल एकाधिकार
या तेरा या मेरा हमारा कुछ नहीं??
बीत रहा है ऊंची आवाज़ों से
मन के भावों को कुचलते हुए घुटन भरा जीवन,...

चाहती हूँ
कलह से मुक्त अमन का आकाश
सुख और समृद्धि सहित यश का प्रकाश
पल प्रतिपल प्रेम और समर्पण का विश्वास,...

सुनो!
कोई भी बात एक पक्षीय नहीं है
समाधान चाहते हैं रिश्तों में तो झुकना दोनों को होगा
आवाज़ों को नहीं स्वप्नों की उड़ान को और तेज़ करना है
चलना है साथ मजबूती से थामे हाथ
कदमों को और अधिक संतुलित करना है,...

हाँ!
मैं हर बार सोचती हूँ कि न सोचूँ
पर सोचती ही जाती हूँ
मुझे और तुम्हें मिलाकर
"हमको"
सुनो!
झूठ नहीं
सिर्फ सच बोलना

ये भी प्यार ही है ना??

प्रीति सुराना

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