रे मन पीड़ा को बहने दे
रीता हो जा रे,..
जग के सारे सुख निंदिया में
तू भी सो जा रे
गहन हुई अब रंगत नभ की
होंगे उजियारे
जागी आंखों में कितने ही
सपने चुन डाले
रोटी की खातिर कितने ही
सपने भुन डाले
सो जा कुछ पल जी ले जीवन
स्वप्न नगर ज़ा रे
जग के सारे सुख निंदिया में
तू भी सो जा रे
गहन हुई अब रंगत नभ की
होंगे उजियारे
सच के तपते भू पर चलकर
पड़ते जो छाले
स्वप्न नगर के गादी तकियों में
अब राहत पा ले
कल फिर चलना होगा तुझको
दूर अभी तारे
जग के सारे सुख निंदिया में
तू भी सो जा रे
गहन हुई अब रंगत नभ की
होंगे उजियारे
एक अकेले अपना तूने
बोझा ढोया है
पर छुपछुप कर तनहाई में
कितना रोया है
चुप हो जा अब कुछ बेमतलब
तू मत सहना रे,....
जग के सारे सुख निंदिया में
तू भी सो जा रे
गहन हुई अब रंगत नभ की
होंगे उजियारे,.....
रे मन पीड़ा को बहने दे
रीता हो जा रे,..
डॉ. प्रीति सुराना
सुन्दर प्रस्तुति
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