सुनो!
ये महज
संबोधन नहीं है
दिल से तड़प कर
निकली हुई
वो पुकार है
जो कह देना चाहती है
गुबार मन का
पर डर जाती है
सोचकर परिणाम,...
बहुत ज्वारभाटे देखे हैं
सागर किनारे
पर सच
कोई सागर नहीं देखा
बिना नदी का
कोई नदी नहीं देखी
जिसका गंतव्य
सागर न हो,...
ओ सागर
मत देना सूखने
मेरे भीतर
प्रेम का सोता
वरना तुम्हारे विरह में
मारी जाएगी
एक नदी
बेमौत,...
करना
इंतज़ार
मेरा होना
तुममे
समाहित होकर ही
होगा
पूरा,...
प्रीति सुराना
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