Monday 18 June 2018

हाँ बस तब से

पैरों की पायल नही छनकती
जाने कब से,..
हाथों की चूड़ी नहीं खनकती
जाने कब से,..

मन पर बोझ मनो का धरा है
जाने कितना क्या क्या सहा है
मन की मैना भी नही फुदकती
जाने कब से,..
पैरों की पायल नही छनकती
जाने कब से,..

रंग नहीं सजते फबते हैं
रूप कुरूप सदा ही रहा है
गुण की गागर भी नही छलकती
जाने कब से,...
पैरों की पायल नही छनकती
जाने कब से,..

आँगन पर आते हैं बादल
घन घन रोज गरज कर जाते हैं
अंतस की बदली भी नहीं बरसती
जाने कब से,..
पैरों की पायल नही छनकती
जाने कब से,..

हाँ! कुछ याद जरूर आता है
रुठ के मन का मीत गया है
सुख की बेला भी नही सुहाती
हाँ बस तब से,...
पैरों की पायल नही छनकती
जाने कब से,..

हाथों की चूड़ी नहीं खनकती
जाने कब से,..

प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment