Monday, 18 June 2018

किससे कहते पीड़ा अपनी


किससे कहते पीड़ा अपनी
मनबसिया ही छलिया था,
प्रेम नगर की राह दिखाकर
चैन अमन सब लूट गया,

दर दर भटका ये मन लेकिन
बूझ न पाया एक पहेली
सब जाना सब समझा लेकिन
हरदम प्रेम अकूट गया

खैर चलो छोड़ो जाने दो
रीत यही है जीवन की,
माटी के घट सी आशाएँ
मानो घट ही फूट गया,

सुख दुख के ताने बाने में
ये मन उलझा उलझा था
सपन सलोना बुनते बुनते
सच का दामन छूट गया,

सोचा सपने होंगे पूरे
कल फिर से दिन निकलेगा
और सुबह जब आँख खुली तो
वो सपना भी टूट गया,...

प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment