आज
अचानक आई
बेमौसम आंधी में
टूटा मनोबल
बिखरे सपनें
धूल धूरसित हुआ समर्पण
फूटा कर्मफल
गिरी पश्चाताप की नमी
और उससे
प्रस्फुटित हुआ भय,...
सुनो!!!
बची हो तो उडेल दो
आज ही सारी का सारी
प्रेम की दवा
जिससे
हमेशा के लिए खत्म हो
आरोप-प्रत्यारोप के दौर से
हताहत
रिश्ते में मौजूद डर का बीज
जो बार-बार उगकर
आतंकित करता है जीवन को,
खत्म हो जाए पल्लवन के पहले ही
यह हानिकारक
अनावश्यक खरपतवार
और फिर दोबारा उगने की हिम्मत न करे,
अब डाल दो मिट्टी पुराने सारे गिले-शिकवों पर...
और हाँ!!!
विश्वास की खाद जरूर डालना रिश्ते के बीज पर
देखना फिर अंकुरित होगा
हमारा रिश्ता
फिर पोषित, पल्वित और फलित भी
महकेगा फिर हमारा आंगन
प्रदूषण रहित प्राणवायु से,...
बस करनी होगी
फिर एक कोशिश
साथ-साथ,....
दोगे साथ मेरा??
प्रीति सुराना
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteखत्म होते विश्वास को फिर नया अंकुरण दो, अनुपम ।
वाह बहुत सुंदर रचना
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