Monday 4 June 2018

वसीयतनामा

सुनो!
आज जी है मैंने
दर्द भरी
एक तन्हा शाम
और
इस तन्हाई को
बांटने के लिए
लिखा है
एक खत तुम्हारे नाम
मेरे बाद
खोलना वो यादों की कोठरी
जो मौजूद और महफूज़ रही
अब तक
हमेशा
तुम्हारे मन के उस कोने में
जहाँ
मेरे सिवा किसी का भी प्रवेश वर्जित था
और
खोलना वो परतें
जिसमें हमेशा
सिमटा रहा
मेरा तुम पर
अटूट विश्वास
हाँ!
लिख रखी है
वहीं
आज की शाम
एक पाती
एक वसीयतनामा
अपनी जिम्मेदारियों का
तुम्हारे नाम,...
इस प्रेम समर्पण और विश्वास के साथ
तुम निभाओगे मेरे हिस्से की
तमाम जिम्मेदारियाँ
मेरे बाद,..

प्रीति सुराना

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