Thursday 31 May 2018

*गद्य लेखन का महत्व*

आज का विषय एक बहुत ही सार्थक चिंतन का पर्याय है। गद्य लेखन का महत्व क्या है??
*इस पर विमर्श के पूर्व ये आवश्यक है कि समझा जाए कि गद्य क्या है?* ईश्वर से मन ही मन मांगी हुई मन्नतों की भाषा जिसे लयबद्ध न किया गया हो, माँ से लोरी सुनने के लिए तुतलाती बोली में किया गया हठ? पिता से मिली संस्कारों वाली छोटी-छोटी डाँट और सीख के अंश? शिक्षक द्वारा पढ़ाये गए पाठों का सारांश , कविताओं का अर्थ, निबंधों में गाय से विज्ञान और दहेज से खेल तक सभी विषयों पर लिखे शब्द और उपसंहार? गणित के प्रमेयों  और समीकरणों को समझाने के लिखी गई परिभाषाएं? विज्ञान के चमत्कारों को सहजता से आम जन मानस तक पहुंचाने की शब्दावली? दोस्तों से की गई ठिठोली, प्रेमी प्रेमिका के बीच प्रेम-झगड़ा, रूठना-मनाना या लिखे गए प्रेम पत्र? सैनिकों द्वारा परिवार को लिखी गई चिट्ठियां? गुरु का ज्ञान? पड़ोसी की पुकार? पीड़ित की पीड़ा का आख्यान? मजबूर की मजबूरी का बखान? कानून या विधि का विधान? न्यायालयों द्वारा दिये गए निर्णय? चिकित्सक द्वारा दिया निदान? व्यापारी द्वारा कमाया गया धन या कृषक द्वारा दिया गया धान? मंच पर अभिनय का संधान या जीवन में संघर्ष की प्रधानता?   मन में पल पल उठती जिज्ञासा या समय द्वारा दिया गया समाधान?? देश विदेश में समन्वय का माध्यम? संधियों में लिखा गया संधिपत्र? राजनीति के नियंताओं की नीतियां? क्रांतिसूत्रों के नारे? धरती गगन और सितारे? या सुबह सुबह टीवी पर सुने जा रहे समाचार या चाय की चुस्कियों के साथ का ताज़ा अखबार।
             इतना सोचने के बाद भी बहुत कुछ है जो छूट जाता है फिर भी चंद शब्दों में कहने की कोशिश करूँ तो *"किसी भी कार्य को प्रतिपादित करने के लिए मष्तिष्क में सबसे पहले जो विचार आता है वो गद्य है"*।

*अभिव्यक्ति और संवाद की पहली विधा गद्य ही है* क्योंकि कोई भी विचार कलाओं में, काव्य में, कार्यों में, विविध क्षेत्रों की विशेष उपलब्धियों में, या किसी अन्य रूप में ढलने के पहले शुद्ध रूप से गद्य ही होता है। विचार मस्तिष्क का अनिवार्य उत्पाद है किंतु उसकी अभिव्यक्ति उतनी आसान नही जितनी उसकी उत्पत्ति है। विचारों को शब्दों में ढालने के अलग-अलग ढंग, विधि, रीति जिसे विधा कहा जाता है। दरअसल उस विधा को सिखाने के लिए बनाई गई परिभाषा भी गद्य में होती है।
       एक  इंसान जो न कवि है न लेखक, बिना गद्य के तो उसका जीवन सम्भव नहीं। एक मूक व्यक्ति भी इशारों में जो संवाद करता है वो मस्तिष्क तक गद्यरूप में ही पहुंचता है। भक्ति के गीतों की प्रासंगिकता से इनकार नहीं किन्तु प्रवचनों के बिना अध्यात्म की कल्पना भी अकल्प है। दैनिक जीवन की शुरुआत से अंत तक, संघर्षों और सफलता की गाथा से क्रांति और आंदोलनों की भूमिका में काव्य, गायन, चित्रकला या अभिनय नए रंग भर सकते हैं किंतु उसके मूल में गद्य एक अनिवार्य तत्व होता है। उदाहरण के रूप में अपवादों को छोड़कर कोई भी चलचित्र कभी भी केवल गीतों में बनकर रोचक नहीं हो सकता, जबकि बिना गीतों के भी फिल्मों की रोचकता कायम रखी जा सकती है। कोई भी केवल काव्य में संवाद आजीवन नहीं कर सकता।
*गद्य लेखन एक विधा के रूप में* - गद्य को लेखन की एक विधा के रूप में माना गया है जबकि सही ये है कि गद्य की अभिव्यक्ति के अनेक प्रकार हैं।
     गद्य को *नाटक, एकांकी, आलोचना, समालोचना, समीक्षा, साक्षात्कार, आत्मकथा, जीवनपरिचय, संस्मरण, उपन्यास, कहानी, लघु कथा, लघुकथा, व्यंग्य, हास्य, चुटकुले, इतिहास, निबन्ध, संस्मरण, यात्रा संस्मरण, डायरी लेखन, पत्र लेखन, समाचार लेखन, गद्यकाव्य, अतुकांत रचना आदि अनेकानेक विधाओं में* बांटा जा सकता है, लिखा जा सकता है, पढ़ा जा सकता है जीया जा सकता है।
          माना कला और मनोरंजन के क्षेत्र में कविता, गीत, ग़ज़ल का गायन, कवि सम्मेलन, गोष्ठियां आदि मनोरंजन के साथ-साथ प्रेरक प्रसंगों में भी समयानुसार प्रासंगिक होते हैं किंतु काव्य के अंकुरण की भूमि अनिवार्य रूप से गद्य ही होती है। *कोई भी गीत या काव्य विचारों के बिना नहीं बन सकता और विचार चाहे किसी भी रस में ढले कभी भी सीधे काव्यरुप में नहीं उपजता।*
काव्य में कठिन विधाएँ हैं जो गद्य रूप में परिभाषित पाठों द्वारा सीखी जा सकती है। लेकिन गद्य जीवन के पल प्रतिपल घट रहे घटनाक्रम सिखाते हैं। हर कोई लिख नहीं सकता पर गद्य हर जगह विद्यमान है । हर किसी में समाहित है।
   एक उदाहरण के रूप में देखें तो भूख सबको लगती है। भोजन मिलने पर रुचि या अरुचि से मजबूरी या खुशी से हर कोई खाता है। परिस्थितियां भोजन पकाना सीखने पर विवश भी करती है। पर कोई विशिष्ट स्वाद के व्यंजन बना पाता है कोई सादा भोजन जो पेट भरने को पर्याप्त हो। विधाओं को उस बनाए गए भोजन की विशिष्टता के साथ परोसने के सलीके से भी जोड़ा जा सकता है। *विचारों को थाली, कटोरी, गिलास, प्याली या किसी भी पात्र में परोसा जाए अनिवार्य तत्व भोजन (गद्य) और मूल तत्व भूख (विचार) ही होगा।*
गद्य विधा की मान्यता का इतिहास सतयुग में पत्र लेखन से लेकर कलयुग यानि आज तक सर्वमान्य है। समाचार पत्रों के आरंभ से लेकर आज़ादी के आंदोलन में पत्राचार की भूमिका भी उल्लेखनीय है। बड़े बड़े आंदोलनकर्ताओं व क्रांतिकारियों के उद्देश्यों के दस्तावेज आज भी गद्य रूप में संरक्षित मिल जाएंगे। सेक्सपियर के नाटकों के युग से आज चेतन भगत की लोकप्रियता भी गद्य के महत्व को स्थापित करती हैं।
          *हर बात को काव्य में कहना सहज नहीं होता लेकिन हर बात को गद्य में लिखा जा सकता है।* सटीक गद्यलेखन, तर्कपूर्ण गद्यलेखन, सोदाहरण गद्यलेखन, भले ही काव्य से अधिक दुष्कर प्रतीत होते हैं किंतु ये भी कटु सत्य है कि वर्तमान परिवेश में काव्य केवल पुस्तकों, मंचों और गायन के क्षेत्र में जीविकोपार्जन का साधन बन सकता है।
*गद्य लेखन और आय के स्रोत* गद्यलेखक निम्नलिखित कार्यों से आय प्राप्त कर सकता है।
*पुस्तकों लेखन एवं विक्रय करके।
*पत्रकारिता करके।
*अनुवाद करके।
*पाठशोधन करके।
*ग्रंथकार बनकर।
*ग्रंथालय अभिक्षक का कार्य करके।
*समाचार लेखन एवं वाचन द्वारा।
*शिक्षण व प्रशिक्षण कार्य द्वारा।
*वेबसाइट हेतु विषय सामग्री संकलन और प्रेषण करके।
*सोशल मीडिया के पूर्ण ज्ञान न होने के कारणों से जो रचनाकार अपनी रचनाएँ टंकित नहीं कर पाते उनके लिए टंकण कार्य करके।
*शासकीय कार्यों में टंकण कार्य करके।
*ऑनलाइन टंकण और अनुवाद के कार्य करके।
*प्रकाशन एवं संपादन का कार्य करके।
           उपरोक्त सभी अवसर काव्य की अपेक्षा गद्य के रचनाकार को आसानी से उपलब्ध हो सकते हैं।

*सार बातों का कहूँ तो सार बस इतना सा है*
*काव्य का रस और गंध माना बहुत भीना सा है*
*अभिव्यक्ति का सुदृढ़ माध्यम गद्य के लेखन में है*
*आय, अवसर, विकास का गद्य विस्तृत नभ सा है।*

डॉ. प्रीति सुराना

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