मुझे स्वप्न वो ही दिखाना जो खुद मैं पूरे कर सकूँ,
अब नही है मुझमें हिम्मत कि टूटे सपनों को ढो सकूँ,..
बहुत तड़पी, बहुत सहमी और बहुत घुटती रही,
अब नहीं है हौसला कि एक पल को भी मैं रो सकूँ,..
कई रातें स्वप्न बुनकर व्यर्थ ही गुजार दी,
अब दो दुआ टूटन की पीड़ा भूलकर मैं सो सकूँ,..
भविष्य के निर्माण हेतु वर्तमान की नींव पर,
नीढ़ नया बनाकर खंडित अतीत को फिर धो सकूँ,...
पीड़ा के बीज स्वप्न ही हैं ये तो सभी जानते हैं,
कोशिश रहेगी अब सृजन में खुशियों के बीज बो सकूँ,...
प्रीति सुराना
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