अभी-अभी
कुछ लोगों को पीठ पीछे कहते सुना
मेरी धीमी रफ़्तार
सफलता के मुकाम तक पहुँचने में
सबसे बड़ी बाधक है,...
कहना चाहती थी रुककर
एक कमज़ोर दिल में
मजबूत इरादे रखती हूँ
इसलिए भागती नहीं
संभल-संभल कर चलती हूँ,..
माना थोड़ी कमजोर हूँ
तन-मन-धन से
परिस्थितियों और जिम्मेदारियों के चलते
पर मुझे गर्व है हर क्षेत्र में
समायोजन का हुनर रखती हूँ,..
माँ पापा ने सिखाया था
मेरी उंगली थामकर मुझे चलना
दौड़कर आगे निकलना मैंने नहीं सीखा
अपनों के साथ ही सफ़र में
खुद को सुरक्षित पाती हूँ,..
कोई नहीं जानता मेरे धीमे कदमों के राज़
कि मैं खुश हूँ और सधे हुए कदमों से
चलना चाहती हूं ताउम्र सिर्फ तुम्हारे साथ
सिर्फ इसलिए तुमसे आगे न मेरी राहें जाती
और न ही मैं जाती हूँ,...
सुनो!
दोगे न साथ हमेशा
मेरे हमसफर
मेरे हमराज़
*'मेरे तुम'*
प्रीति सुराना
0 comments:
Post a Comment