Tuesday 20 March 2018

मेरा सच मेरी तन्हाई

हाँ!
आज किया स्वीकार
प्यार समर्पण भरोसा
सब व्यर्थ हो जाते हैं
एक ही पल में,..

मान लिया
अधिकार की परिधि में
दायित्वों की स्मृतियों का दखल
नही किया जाता स्वीकार,..

लापरवाही, अवहेलना,
अपमान,अविश्वास,
आरोप-प्रत्यारोप,
तिल को ताड़ करने के साधन,..

अचानक
सारे तीर निकल कर
हाथों में और जिव्हा पर
वर को प्रतिपल तत्पर,...

पर नहीं है हौसला
अपेक्षारहित होकर उपेक्षा सहने का
इसलिए लौट रही हूँ
अब मैं अपने दायरों में,..

समय से होड़ की
किस्मत से किये झगड़े
हालात को बदलने की कोशिशों में
कोई भी कोताही नहीं बरती,..

सुना था
कूड़े के भी दिन फिरते हैं
कर्म से हाथ की लकीरें भी बदल जाती है
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती,... वगैरह वगैरह

सब झूठ
पर सच क्या ये भी नहीं पता????
फिलहाल
मेरा सच मेरी तन्हाई,....

प्रीति सुराना

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