Monday, 19 March 2018

*'पश्चाताप की आग'*

*'पश्चाताप की आग'*

'मांजी, जानकी के पूरे दिन चल रहे हैं और उसके पैरों में सूजन भी बहुत है, क्यों न उसे अब आराम के लिए छुट्टी दे दें।'
'इनकी आदत होती है जचकी होने तक काम करने की तुम्हें इतनी दया दिखाने की जरूरत क्या है? क्या तुम अपने विद्यालय से छुट्टी लेकर घर के काम करोगी? नहीं न? तो मुझसे उम्मीद मत करो।'
'बच्चों की परीक्षा सिर पर थी, उसे छुट्टी मिलनी नही थी, दिल पर पत्थर रखकर अपना पर्स उठाया और मांजी को आती हूँ कहकर निकल पड़ी विद्यालय की ओर।' दिनभर की आपाधापी में जानकी दिमाग से निकल गई।
अगले दो दिन जानकी काम पर आई ही नहीं, उसे थोड़ी चिंता सी हुई फिर विद्यालय और घर का काम भी साथ साथ करने में कठिनाई हो रही थी। आखिर तीसरे दिन पड़ोस की कामवाली जो जानकी के साथ ही आती जाती थी सामने से आती दिखाई दी तो रहा न गया और उसने जानकी के बारे में पूछ लिया।
उसने कहा जानकी को मरे तो 3 दिन हो गए, काम से घर पहुँचते समय ही रास्ते मे गश खा कर गिर गई वहीं बेटे को जनम दिया। आसपास के लोग सरकारी अस्पताल तो ले गए पर उसको बचा नहीं पाए। उसका आदमी नशा करता है और बच्चे को ले जाने को तैयार नहीं था। अस्पताल वालों ने बच्चे को पालना घर में रख लिया है। किस्मत अच्छी रही तो कोई भला आदमी गोद ले ले शायद।
इतना कहकर वो तो चली गई पर शिवानी के भीतर *पश्चाताप की ज्वाला* धधकने लगी। कहीं न कहीं वो खुद को गुनहगार मान बैठी थी।
आशीष की मृत्यु सड़क दुर्घटना में होने के बाद उसकी जगह पर अनुकंपा नियुक्ति के तहत शिवानी को नौकरी मिल गई। मांजी और उसका गुजारा उसी से हो रहा था। शिवानी खुद एक अनाथ लड़की थी जिसने आशीष से प्रेम विवाह किया था। अनाथ होने का दर्द और आशीष के बाद अकेलापन, माँजी की जिम्मेदारी जैसे बहुत से कारण थे जिसकी वजह से उसने एकाकी जीवन चुना था।
रात भर की बेचैनी के बाद सुबह निर्णयात्मक लहजे में माँजी से कहा कि मैं जानकी के बेटे को गोद ले रही हूँ और बिना जवाब की प्रतीक्षा के अस्पताल जाकर सारी कार्यवाही पूरी करके दूसरे ही दिन बच्चे को घर ले आई। 'पश्चाताप की आग' से कुछ राहत मिले इस उम्मीद में ये उसने अपने बेटे का नाम रखा 'अमन'।

प्रीति सुराना

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