Thursday, 1 March 2018

मोरे पिया

हाँ !
मुझे भी पसंद है

प्रकृति के सारे रंग,..
चाहे

गालों पर हया का गुलाबी रंग हो,
या आँसुओ से फैले काजल का स्याह रंग,

उगते और ढलते सूरज का लाल रंग हो,
या अमावस की चांदनी का काला रंग,

तपते दिनकर का सुनहरा रंग हो,
या पूनम की चांदनी का रुपहला रंग,

आसमान का नीला रंग हो,
या धरती की मिट्टी का रंग,

पत्तियों का हरा रंग हो,
या जड़ों में लकड़ी का रंग,

सुख में फैलता रंग हो,
या दुख में मिटता रंग,

सुनो! तुमनें तो सुना दी
दो ही पंक्तियों में दिल की दास्तां कि,..

पुरानी होली का थोड़ा सा गुलाल रखा है
तुम्हारा " इश्क़ " मैंने यूँ संभाल रखा है....

आज
तुम

मल दो मेरे गालों पर जो गुलाल रखा है
क्यों इश्क को हथेलियों में संभाल रखा है,..

क्योंकि
सच

मुझे भी पसंद है
प्रकृति के सारे रंग,..

फिर रंग दो
तुम जिस रंग में मोरे पिया,...

प्रीति सुराना

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