मेरे पास सब कुछ है पर मेरा कुछ नहीं
सिर्फ इसके सिवाय सच और कुछ नहीं
टूटकर बिखर रही हूँ रेत सी सागर किनारे
भीगती हूँ सूखती हूँ पर बनती कुछ नहीं
प्रीति सुराना
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मेरे पास सब कुछ है पर मेरा कुछ नहीं
सिर्फ इसके सिवाय सच और कुछ नहीं
टूटकर बिखर रही हूँ रेत सी सागर किनारे
भीगती हूँ सूखती हूँ पर बनती कुछ नहीं
प्रीति सुराना
मुसलसल वार होते रहते है
ReplyDeleteगहरी गहरी चोट खाये बैठे हैं
निगाहें पहुंचती नही ऊपर से लोगो की
कैसे नापी जाए गहराईयां चोटों की।
उम्दा
बहुत बढ़िया
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