Tuesday 27 February 2018

रेत सी

मेरे पास सब कुछ है पर मेरा कुछ नहीं
सिर्फ इसके सिवाय सच और कुछ नहीं
टूटकर बिखर रही हूँ रेत सी सागर किनारे
भीगती हूँ सूखती हूँ पर बनती कुछ नहीं

प्रीति सुराना

2 comments:

  1. मुसलसल वार होते रहते है
    गहरी गहरी चोट खाये बैठे हैं
    निगाहें पहुंचती नही ऊपर से लोगो की
    कैसे नापी जाए गहराईयां चोटों की।

    उम्दा

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  2. बहुत बढ़िया

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