हाँ!
आहत हूँ आज
बहुत आहत
और मन है
बेहद अनमना सा,..
जाने क्यों
नहीं सहा जाता
हमारे बीच दुराव-छिपाव
या कोई छोटा सा भी झूठ
वो भी व्यर्थ की बातों में,
अपनी लापरवाहियों को
छुपाने के लिए,...
जहाँ सच बोलकर झगड़ना
झूठ बोलकर बढ़ने वाली दूरियों से
कहीं बेहतर हो सकता है,..
पर अनायास
ये बेवजह की बातें
दुखा जाती है नाजुक सा मन,
कुछ कचोटता है भीतर
अनवरत
पर टूटता नहीं
एक अटूट आस्था सा
मेरा तुम पर विश्वास,...
जाने क्यों?
ये भी प्यार ही है न?
प्रीति सुराना
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