Saturday, 10 February 2018

हुकुमत

एक पल में
अपना सबकुछ कहना
दूसरे ही पल में
परायापन,
एक पल में
खुशियों का सबब
दूसरे ही पल में
मैं दर्द बेसबब,
एक पल में
जीने का सहारा
दूसरे ही पल में
हर दर्द की वजह,...
जब
जैसा
जितना
मुझे मानना चाहा,
मुझे
तब
वैसा
उतना
मान लिया तुमने,....
अब सिर्फ एक गुजारिश
एक बार
एक पल के लिए
मेरी जगह
आना
थोड़ा ठहरना
फिर सोचना
सामंजस्य बिठाना है तुम्हें
मुझमें और खुद तुम्हारे मन में,...
पर
समझ सको
तो समझना
मुझे बिठाना है वही सामंजस्य
तुम्हारे मन और अपने मन में,...
हर बार मेरा मन
तुम्हारे मन की माने
ये तुम्हें सही लगता है,
पर कभी-कभी
मेरा मन भी मचलता है
जिद्दी बच्चे की तरह
आखिर मन ही तो है,...

पूछता है प्यार में यूँ
एकतरफा हुकुमत
क्यूं और कब तक,... ???

प्रीति सुराना

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