पथरीली राहें सपनों की
और मेरे पैरों में छाले हैं,
कर्म किये हरदम ही अच्छे
पर सुख के घर मे ताले हैं,
किससे कहती मन की बातें
सब के दुखड़े अपने-अपने,
गहन पीर के अनुभव ही मैंने
अपनी कविता में ढाले है।
प्रीति सुराना
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पथरीली राहें सपनों की
और मेरे पैरों में छाले हैं,
कर्म किये हरदम ही अच्छे
पर सुख के घर मे ताले हैं,
किससे कहती मन की बातें
सब के दुखड़े अपने-अपने,
गहन पीर के अनुभव ही मैंने
अपनी कविता में ढाले है।
प्रीति सुराना
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