*मन चल अकेला चल*
मन चल अकेला चल
संभाल आत्मा का बल
आज में जी ले अभी
न सोच क्या होगा कल
पत्थर भी तोड़ सकता है
जो ठान ले नदी का जल
शिखर तक है पहुंचना
भूलना न पर धरातल
*सफर* ज़रा कठिन सा है
मुश्किल है जीवन के पल
बुरा किसी का न किया
अच्छा ही फिर मिलेगा फल
सभी से की है मित्रता
है कौन जो बनेगा खल
नीयत किसी की कौन जाने
जाने कौन करेगा छल
सवाल कई अनबूझे से
ढूंढ ले तू कोई हल
मन चल अकेला चल
संभाल आत्मा का बल,...
प्रीति सुराना
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