Monday, 22 January 2018

शुक्रिया कहूँ तो कैसे

सुनो!
चल रही थी सांसे
धड़क रहा था दिल
गुज़र रही थी ज़िन्दगी
पर
सिर्फ तुम्हारे हाथ थाम लेने से
जिंदगी की कीमत
उस शून्य की तरह बढ़ी
जिसके सामने
एक आकर खड़ा हो गया हो,
हाँ!
बढ़ा दी मुझमें
तुमनें
जिजीविषा
हिम्मत
ख्वाहिशें
सपनें
और
दे दिया मेरे होने को
एक सार्थक अस्तित्व
शुक्रिया कहूँ तो कैसे
शब्द नहीं है मेरे पास
पर जानती हूं
समझ लोगे बिन कहे
मेरे हमदम
मेरे तुम,..

प्रीति सुराना

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