Tuesday 21 November 2017

संगति

अविरल नदी सी थी वो, बांधो में बांधकर जिसकी चंचलता खत्म कर दी गई। एक दिन कोई आया जिसने गलती से,.. हां! हां! गलती से ही बांध खोल दिया और नदी ने कृतज्ञता जाहिर करते हुए उस अजनबी के साथ नदी और किनारों का संबंध जीते हुए प्रवाह शुरू किया।
सच यामिनी के सब्र के बांध विहान ने खोल तो दिए, यामिनी अपनी गति से गतिमान भी हो गई, पर किनारों की सुरक्षा और अपनत्व का मोह न छोड़ सकी।
दो छोटे बच्चों की जवाबदारियों और उदासीनता वाले दाम्पत्य ने भीतर ही भीतर घुटन पैदा कर दी थी। एक दिन कार्यालय में विहान से मुलाकात हुई, यामिनी के विभाग से ही जुड़ा काम दोनों को मित्रता में जोड़ गया। अक्सर विहान लंच टाइम में आने लगा, दोस्ती प्यार में बदली। और धीरे - धीरे यामिनी भावनात्मक रूप से विहान पर निर्भर होने लगी। सारी जिम्मेदारियां बखूबी निभाते हुए भी जाने क्यों विहान को देखते ही बच्चों सा उसका मन उसे देखने तक को मचल जाता, फिर फोन पर जिद और रोना।
सब कुछ सही था पर विहान का गुस्सा बहुत तेज था। यामिनी की जरा-जरा सी बात पर उसका साथ छोड़ देने की बात अंदर तक दहला देती। ऐसे में अपने मर्ज, फर्ज या भावनाओं की कोई भी बात उसके मुंह से निकल भी जाए तो विहान जवाब देता 'तुम्हें कोई काम नही है, तुम्हारा गुलाम नही हूँ जो दिनभर के काम के बाद तुम्हारा रोना सुनू या दिन भर तुम्हारी तारीफों के के कसीदे पढूं।'
धीरे-धीरे संगति का असर था या नियति यामिनी भी गुस्से में प्रतिक्रिया देने लगी, स्वभाव के विपरीत होने के कारण यही गुस्सा उसकी सेहत को लीलने लगा।
मानसिक असंतुलन में एक दिन सपरिवार जान तक देने की ठान ली। पर समय रहते खुद को रोक लिया।
कुछ परेशानियों के बाद सामान्य होने की कोशिश करने लगी। गलतियों और अपेक्षाओं के गड्ढों से बाहर निकल फिर निर्बाध जीने की उम्मीद में विहान से माफी मांगी, खुद के बांध खुद बनाकर गतिमान होने का निश्चय किया।
हिम्मत करके विहान से फ़ोन पर कहा ' विहान मुझे माफ़ कर दो, और एक बार फिर सबकुछ भूलकर साथ चलो मुझसे अकेले नहीं चल जाएगा।'
विहान ने कहा 'मैं साथ रहूंगा पर अब मैं प्यार नहीं कर पाऊंगा' ।
स्तब्ध यामिनी सशर्त विहान के साथ आगे बढ़ने के लिए खुद को तैयार कर रही उस समय उसके आखरी शब्द ये थे कि
'मैं, अब मैं नहीं हूं, समय ने सब कुछ बदल दिया।'
"जिंदा लाश सी यामिनी सांसों और समय संगति में अब भी जिंदा तो है" - पर कब तक?

प्रीति सुराना

1 comment:

  1. जरुरत से ज्यादा किसी पर भी निर्भरता हमेशा दु:खदायी ही होता है
    मर्मस्पर्शी प्रस्तुति

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